गुण

कला रूप की कभी दाशी नहीं होती,
रूप ही कला का दास बनके रहता है,
रूप के सौंदर्य से क्या होता है,
गुणों के सौंदर्य से ही,
मनुष्य महान बनता है!
– वैभव कुमरेश